Tuesday, September 22, 2009

Acidity

अम्ल ता (Acidity)

लक्षण: पेट में जलन, मिचली, उल्टी एवं खट्टी डकार।
कारण: कब्जम का रहना, मानसिक तनाव, तला भूना, तेज मसालेदार भोजन, भूख से अधिक खाना, काफी-चाय, मदिरा, धूम्रपान तंबाकू, गुटका आदि का सेवन, चीनी एवं नमक का अधिक उपयोग।
उपचार – गाजर, खीरा, पत्ताा गोभी, लौकी, पेठा इत्याेदि सब्जियों के रस पर साप्ताकहिक उपवास करें एवं आवश्यरकतानुसार एक सप्ताजह से तीन सप्तालह तक केवल फल, सलाद एवं अंकुरित अन्नय खायें। चीनी एवं नमक का प्रयोग न करें। भोजन अच्छीा तरह चबाकर खायें।
प्रतिदिन नारियल पानी, नींबू-शहद का पानी, फलों का रस, सब्जियों का रस इत्यायदि लें। जिनमें गाजर व पत्तायगोभी का रस विशेष उपयोगी है।

ताजे आंवले का रस या आंवले का चूर्ण एवं थोड़ी हल्दी शहद में मिलाकर चाटें। पर्याप्तल मात्रा में गुनगुना पानी पीयें। पांच तुलसी के पत्तेक रोज खायें। सूर्य किरणों में रखा हुआ आसमानी बोतल का पानी दो-दो घंटे पर पियें।
भोजन के बाद वज्रासन में बैठें।
नित्यक एनिमा, कुंजल, स्नापन से पहले सूखा घर्षण (सूखे तौलिये से शरीर को रगड़ना) करें, खुली हवा में लम्बी गहरी सांस लें, पेट पर मिट्टी पट्टी, कटिस्नािन, पेट पर गर्म ठंडा सेक, गर्म पाद स्नालन तथा सप्तााह में एक बार गीली चादर की लपेट लें तथा उपरोक्तक कारणों को दूर करें।
नोट – दूध का प्रयोग न करें क्योंरकि दूध एक बार तो जलन को शांत कर देता है लेकिन दूध को हजम करने के लिए पेट को अधिक तेजाब बनाना पड़ता है। दवाईयों द्वारा अस्था ई रूप से दबाया गया अम्लाता का रोग बाद में अल्सदर बन जाता है तथा नेत्र रोग एवं हृदय रोग का मुख्यट कारण बन जाता है।

No comments:

Post a Comment