Wednesday, September 23, 2009

नमक के गरारे

मौसम बदलने पर गले में खराश या आवाज बैठ जाने की शिकायत सुनने में आती है।

गला खराब होने का मतलब अक्सर गले में दर्द होना या खुजली जैसा होना, गले में कफ जम जाना और गले की आवाज बदल जाना माना जाता है।

धूल या पराग कण इत्यादि के प्रति अति संवेदनशील होने से शरीर प्रतिक्रिया करता है, यही गला खराब होने के रूप में उभरता है। इन तमाम परिस्थितियों का गले पर असर पड़ता है।

हमारी श्वास नली व ग्रास नली के अंदर एक लसलसा पदार्थ हमेशा स्रावित होता रहता है। यह नलियों में से गुजरने वाले पदार्थों के आवागमन को सुगम बना देता है।

साथ ही उसमें कुछ ऐसी प्रतिरक्षात्मक कोशिकाएँ भी होती हैं, जो गले में से गुजरने वाले पदार्थों को भाँपकर नुकसानदेह पदार्थों को नष्ट करने में जुट जाती हैं।

इस कारण यह पदार्थ धीरे-धीरे गाढ़ा होता जाता है। इसमें मृत कोशिकाएँ, रोगाणु तथा नुकसानदेह पदार्थ काफी मात्रा में भर जाते हैं। गाढ़ी अवस्था में हम इसे कफ कहते हैं। यह अगर गले में जम जाए तो गला खराब हो जाता है।

प्रतिरक्षात्मक कोशिकाओं को नुकसानदेह बाहरी पदार्थों से लड़ना पड़ता है तो इनमें सूजन आ जाती है और गला खराब हो जाता है। यानी गले में दर्द या खुजली चलने लगती है।

गला खराब होने पर नमक के गरारे से काफी मदद मिलती है। नमक का सांद्र घोल गले की परत पर चढ़ाई किए हुए कई रोगाणुओं के लिए काफी खतरनाक है। इसके प्रभाव से रोगाणु मर भी जाते हैं।

कफ जमा हो तो यह गाढ़े कफ को पतला कर काफी मात्रा में ठोस पदार्थों को गले से बाहर निकालने में मदद करता है, इसलिए नमक के घोल से गरारे करने को कहा जाता है।

* सहन कर सकने योग्य एक गिलास गरम पानी में एक चम्मच नमक डालकर इस पानी से गरारे करना चाहिए।

* फिटकरी का एक बारीक सा टुकड़ा भी इस पानी में डालकर गरारे करने पर आराम मिलता है।

* नमक के साथ या तो खाने का सोडा दो चुटकी मिलाकर गरारे करने से भी आराम मिलता है।

या तो फिटकरी डालें या खाने का सोडा मिलाएँ यानी नमक के साथ कोई एक चीज को प्रयोग करें।

No comments:

Post a Comment